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Now That You Are Born-Again: What Next?

This booklet fits in your shirt pocket and will help Christians and new converts know what they are to do once they are saved. In this booklet, Pastor Schultze also shares the essential spiritual disciplines for a successful walk with God: Daily reading of the Bible, prayer, consistent witnessing , obedience.

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Praying the Will of God The Lord's Prayer is an answer to His disciples' request: "Lord teach us to pray." As a result, our Lord and Savior gave us this prayer to take away all doubt as to which prayers He will answer and which He will not answer. However, this commentary is not only a call to pray rightly, but it also lays the foundation for Christian theology at its best." - Pastor Schultze.

Praying the Will of God: A Commentary on the Lord's Prayer

$15.00 USD includes shipping and handling if mailed in the United States. 192 pages.

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The Ten Commandments are a gift from God to man, so that man may know how to live with his Maker and with other men. These laws are a moral compass for every soul, a code of ethics for every nation. To neglect them is to invite misery. To heed them is light and joy." - Pastor Schultze.

The Law and You: A Commentary on the Ten Commandments

$15.00 USD includes shipping and handling if mailed in the United States. 176 pages.

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CTO 421

CTO 422

पहले परम ईश्वर के राज्य की खोज करो

लेखक राइमार शोल्त्ज़ी जी

मेरी जानकारी में कुछ वचन नहीं है जिस में इस वचन से और बातें हैं| आकाश का महाँ तारा लुब्धक जैसा यह पद्ध चमक देता है| सारे जीवन और प्रकाशन के रासों पर ज्योति डालता है—हार्दिक पवित्रता से लेकर दैनिक आवश्यक्ताओं की आपूर्ति तक| यह है येशुआ जी की प्रतिज्ञा कि अगर हम पहले परम ईश्वर के राज्य की खोज करें तो वे हमारी सारी आवश्यक्ताओं को पूरा करेंगे| अब सुनिये: उनके राज्य में प्रवेश कैसे करें? उस के बाद येशुआ जी हम को प्रवेश के लिये चार शर्तें देते हैं:

1.       जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परम ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता (योहनान 3:5)| हम तुरन्त देख सकते हैं कि पहले हम इस दुनिया में पैदा होते हैं, और वह ईश्वर का राज नहीं है| ईश्वर के राज में प्रवेश करना पड़ता है, इस लिये यह स्वेच्छिक चुनाव और प्रक्रिया की बात है| परम ईश्वर का राज बनाया गया था हर विश्वासी के निवास-स्थान के लिये| उस में प्रवेश करेगा, तो उस की सारी आवश्यक्ताएँ पूरी हो जाएँगी; अगर नहीं, तो बेघर, बेहाल, और वेनाशी रह जाएगा| ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिये पुराने शरीर में होते हुए आत्मा से जन्म लेना ज़रूरी होता है – यह दूसरा जन्म है|

यह समझ रखो कि इस में दो हिस्से होते हैं: एक ईश्वर का और एक इंसान का| परम ईश्वर का भाग आत्मिक जन्म कराना होता है, और यह काम केवल ईश्वर का है| इंसान का भाग स्वेच्छा से प्रवेश करना होता है| जब प्रवेश हो चुकेंगे, येशुआ जी हमारे साथ योग करके हमें आगे ले जाके प्रभु के राज्य में पहुँचा देंगे| और अंत में वहाँ हम सदा-सर्वदा रहेंगे| यह वाली शर्त इकलौती नहीं है; और भी शर्तें हैं| मैं बताता हूँ:

2.       तब येशुआ जी ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम न बदलो और बालकों के समान न बनो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश नहीं कर सकोगे” (मत्ती 18:3)| मसीहा जी के राज्य में घमण्ड और आत्मपर्याप्ति के लिये कोई जगह नहीं होती है| परम ईश्वर को पहले हम में से ये विशेषताएँ मार मिटानी पड़ती हैं, इस लिये कि हम प्रवेश कर सकें| येशुआ जी चाहते हैं कि हम अपने स्वार्गिक पिता पर पूरी तरह निर्भिर हो जाएँ, जैसे कि वे रहे|

3.       “जो मुझ से ‘हे प्रभु’, ‘हे प्रभु’ कहते हैं, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेगा| केवल वह मनुष्य, जो मेरे स्वार्गिक पिता की इच्छा पर चलता है, परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेगा” (मत्ती 7:21)| यह हमें बताता है कि अगर आप गिरजा घर और पवित्र शास्त्र की सभा को जाते हैं लेकिन परम ईश्वर की इच्छा नहीं मानते हैं, तो आप उन के राज्य से वंचित रह जाएँगे| प्रभु के राज्य में उन के नियम तोड़ने के लिये कोई गुंजाइश नहीं होती है| अगर होती, तो ईश-राज्य दुनिया का जैसा होता, कोई फ़रक नहीं|

4.       मैं तुम से कहता हूँ यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश नहीं कर सकोगे (मत्ती 5:20)| फ़रीसी यीस्राएल देश के धार्मिक नियम के अध्यापक थे| सब लोग उन को मानते थे| फ़रीसियों की दिखावे वाली धार्मिकता — जैसे पूजा-आराधना का छुट्टी दिन रखना, उपवास, दान देना और धर्मांतरण कराना — इस से अधिक करने की ज़रूरत है| येशुआ जी की बात सार में यह है कि “जो भी अच्चा फ़रीसी करते हैं, उस को तुम भी करो, और तब उस से भी ज़्यादा आगे जाओ|” अगर हमारा दिखने वाला व्यवहार भीतरी परिवर्तन से नहीं निकलता है, तो आप त्रिएक ईश्वर का ठट्ठा उड़ा रहे हैं|

सो ये हैं, येशुआ जी की शर्तें ईश्वर राज्य में प्रवेश करने के लिये| इन के साथ हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिये| येशुआ जी भी हम को बताते हैं कि राज्य के अंदर जाने के लिये कैसी मानसिकता ज़रुरी है: ...स्वर्ग के राज्य पर ज़ोर होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं (मत्ती 11:12)| इस का मतलब है कि हमें योद्धा की मानसिकता रखने की ज़रूरत है प्रवेश करने के लिये और राज्य में बलात रीति से घुसना पड़ता है क्यों कि व्यक्ति का अपना हृदय, पतित स्वभाव और नरख के बल हमारे विरुद्ध मृत्यु तक युद्ध करते रहेंगे ताकि हम नहीं प्रवेश करें| इस से आप देख सकते हैं कि यह राज्य हम को निःशुल्क नहीं मिलता है, बिना प्रयास के| डरपोकों और अल्पकालीन वालों के लिये नहीं है परन्तु उन्हीं के लिये है जो प्रभु से प्रेम के कारण सब कुछ त्याग करके राज्य का पीछा करेंगे|

क्यों कि येशुआ जी ने कहा: इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता (लूका 14:33)| हम सब कुछ त्याग न करें, तो उन के नहीं हैं किसी भी तरह से| येशुआ जी अपने राज्य में आप को चाहते हैं| आप के लिये मरके जी उठने के बाद वे स्वर्ग में आप के पक्ष में निवेदन करने के लिये सदा जीते हैं ताकि आप प्रवेश करें| यह था उन का प्राथमिक संदेश: येशुआ जी सारे गलील प्रदेश में घूमते-फिरते हुए उन के आराधनालयों में उपदेश देते, राज्य का सुसमाचार घोषित करते हुए... (मत्ती 4:23)| संसार से प्रस्थान करते समय उन्हों ने अपने चेलों को आदेश दी: परम ईश्वर के राज्य का यह सुसमाचार सरे जगत में प्रसारण किया जाएगा कि सब जातियों पर गवाही हो; और तब अंत आ जाएगा (मत्ती 24:14)| सुसमाचार के चार बयानों में मसीहा जी के राज्य के बारे में लगबग 120 निर्देश हैं| प्रेरितों की पुस्तक के अंत में ये शब्द लिखे हुए हैं, जो प्रेरित पौल के बारे में हैं: बिना रोक-टोक के और बहुत निडर होकर वे परम ईश्वर के राज्य का प्रसारण करते रहे, और प्रभु मसीहा येशुआ जी की बातें सिखाते रहे (प्रेरितों 28:31)|

अब थोड़े से समय के लिये परम ईश्वर के राज्य के स्वभाव पर विचार करें क्यों कि यह दुनिया की किसी भी चीज़ की तुलना में एक दम अलग प्रकार का है| प्रवेश करने के बाद, आप नयी जाति के पूरी तरीका से बन जाएँगे, और आप पूरी तरह अलग ढोल के ताल से नाचते हैं| उसी समय से, लोगों को सच-मुच में लगेगा कि आप इस दुनिया में अजनबी और परदेशी हैं| ईश्वर के राज्य में: प्रथम वाले लोग अंतिम होएँगे, गरीबी में अमीरी होती है, मूर्ख बुद्धिमानी वाले हैं, कमज़ोरी में हम मज़बूत हैं, वंचित वाले परितुष्ट हैं, मरने वाले फलने-फूलने वाले हैं, खोने में मिलना होता है, इंतज़ार करने में आगे बढ़ना होता है, देने में प्राप्त किया जाता है, अधीनता आज़ादी है, सताये वाले आशीर्वादी हैं, विनम्र वाले शासक हैं, और उच्चतम पद नौकर का है|

यह निवास है जिस को येशुआ जी हर नवजात विश्वासी को बुला रहे हैं| यह बुलाहट उस को स्वर्गीय स्थानों में मसीहा येशुआ जी के साथ बिठाएगी (इफीसियों 2:6)| ऐसे स्वभाव के लोग एक दूसरों को आँखों में चमक के द्वारा पहचानते हैं और ये सारे लोग राज्य में रहने के तीन मुख्य निशान दिखाते हैं...धार्मिकता, शान्ति और आनन्द जो पवित्र आत्मा जी से होते हैं (रोमियों 14:17)| चाहे जो भी परिस्थिति हो,ये फल उन के जीवन में रहते हैं| हे मित्रो, जब राजा आप के जीवन में निवासी बनने, आप मुकुट पहनाते रहेंगे!

बड़े दुःख की बात है कि अधिकतर गिरजा जाने वाले परम ईश्वर के राज्य के बाहर रहते हैं| अधिकांश ने राज्य के बारे में कम सुना है, या वे प्रमाण के बिना गलती से समझते हैं कि राज्य में रहते हैं| ज़्यादातर ईश-राज्य में प्रवेश करने की जगह सभा में बैठने पर ज़ोर लगाया जाता है| लेकिन राज्य में जी में जी लाया जाता है| राज्य के बिना कलीसियाई लोगों को कोई शक्ति या स्वार्गिक आनन्द नहीं होता है| ज़्यादा कलीसियाएँ कुरिन्थियों की मंडली की जैसी – अब तक सांसारिक (1 कुरिन्थियों 3:3) या लौदीकिया की मंडली जैसी, जहाँ हमें जानने को मिलता है कि मंडली को ताला बंद करके येशुआ जी को बाहर रखा जाता था| येशुआ जी उन के बीच अपने राज्य की स्थापिना का निवेदन करते हुए मंडली से कहते हैं: मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठंडा है न तो गर्म....तू गुनगुना है...इसलिए मैं तुझे अपने मुँह से उगलने पर हूँ....लेकिन तू यह नहीं जानता कि तू कितना अभागा, अत्यंत तुच्छ, दरिद्र, अँधा और नंगा है  (प्रकाशित 3:15-17)| क्या आश्चर्य की बात है कि 100 साल पहले प्रसिद्ध कलीसिया के महान अगुए और सुसमाचार फैलाने वाले, ई. स्टान्ली जोन्स, ने कहा: “कलीसिया ने राज्य को खो दिया है”?

यदि आप पूछें, मैं ईश्वर के राज्य में प्रवेश कैसे करूँ? आगे बढ़ाने के लिये, विमान चालक को किसी भी समय केवल अगले तीन चरण जानने पड़ते हैं| लेकिन प्रभु के पवित्र व्यक्ति को किसी भी समय केवल एक ही आगे के चरण की जानकारी ज़रूरी होती है और वह है, “आत्मत्याग|” येशुआ जी ने कहा: ...जो भी व्यक्ति मेरे पीछे चलना चाहे, तो अपने से निकारे, और प्रतिदिन अपना सूली उठाए हुए मेरे पीछे हो ले (लूका 9:23)| राज्य में प्रवेश के लिये येशुआ जी से दी हुई सारी शर्तें इस एक ही चरण में पूरी हो जाती हैं: आत्मत्याग में हमारे चरण के उपर चरण उठाने से पूरी हो जाती है; और इस आत्मत्याग से हम ईश्वर के आज्ञापालन तक पहुँचते हैं| इस से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राज्य में प्रवेश की प्रकिया में एक चरण कहीं छुट गया आज-कल के मसीही के जीवन में, और यह चरण आत्मत्याग है| स्वार्थ से निकारना पड़ता है और मनमानी को सूली पर उठाना पड़ता है या तो येशुआ जी के पीछे चलने के लिये एक भी क़दम नहीं उठाया जाएगा| सो, आत्मत्याग से आज्ञापालन तक, आज्ञापालन से येशुआ जी के अनुयायी बनने तक पहुँचा जाता है| साफ़ दिखता है कि येशुआ जी के पीछे-पीछे चलना हमें राज्य के फाटकों की दिशा में चला देता है और बाकी सब कुछ इस के द्वारा आ जाएगा (सम्भलना)| आइये, हम इस प्रक्रिया की शुरुआत को देखें, जब व्यक्ति विश्वास में पहली बार आता है|

उसी पल से, जिस में एक व्यक्ति को ईश्वर से जन्म होता है, वह अपने जीवन की मालिकी त्याग देता है (अपने जीवन का मालिक होने से हट जाता है)| इस लिये नये जन्म के कुछ ही पलों बाद येशुआ जी व्यक्ति के जीवन का संचालन करने लगेंगे, अपना पहला आदेश देते हुए: “साक्षी दो!” अपनी मुक्ति के लिये प्रभु जी को धन्यवाद देना है| और तुरन्त, मनमानी उठकर कहेगी कि, “अभी साक्षी का समय नहीं है| तू अपने को मूर्ख बनाएगा; बाद में कर, या तो तू सभा को परेशान करेगा|” तत्काल भीतरी युद्ध शुरू हो जाता है| याद कीजिये, कि स्वर्ग के राज्य पर ज़ोर होता रहा है, और बलवान उसे छीन लेते हैं (मत्ती 11:12)| अगर इस समय में आप स्वार्थ को हराएँ और पावन आत्मा की ईच्छा करें, तो आप पहली आत्मिक साँस लेंगे; अगर नहीं, तो दम घुटते घुटते आप मर जाएँगे| याद रखिये कि जब बच्चा माँ के गर्भ से निकल चूका है, तो माँ से आक्सीजन नहीं मिलता है| उस को अपने से साँस लेना पड़ेगा| जीने या मरने का मामूला है| सो जैसा साँस लेना शारीर के लिये, वैसा आत्मत्याग विश्वासी जीवन के लिये| अपने से निकारने लगना पड़ेगा| तब तुरन्त, मनमानी से निकारके पावन आत्मा की इच्छा मानते हुए, आप को आज्ञापालन से ऐसा आनंद महसूस होएगा, जो उद्धार पाने के आनन्द से बहुत, बहुत ज़्यादा है, और आज्ञापालन करते करते, आनन्द सदा ताज़ा रहेगा| तब हो सकता है कि प्रभु आप से कुछ और करने को कहें: जैसे किसी से क्षमा माँगना, या अपने पूरे घर को उन चीज़ों से साफ़ करना जो प्रभु को प्रसन्न नहीं करती हैं, इत्यादि| क्या समझ में आ रहा है? हर बार आज्ञाओं के पालन के पहले आप को आत्मत्याग करना पड़ेगा| जैसे ही एक-एक आज्ञा को लेकर आप बार-बार अपने से निकारते रहेंगे, तो आप येशुआ जी के पीछे-पीछे चलते रहेंगे, और उन के साथ राज्य के फाटकों में ज़रूर प्रवेश करेंगे| धार्मिकता, शान्ति और आनन्द पवित्र आत्मा जी में आप के रहेंगे| और जब आप के भीतर राज्य है, तो आप के भीतर पवित्र आत्मा जी भी हैं और जब आप के भीतर पवित्र आत्मा जी हैं, तो आप के भीतर राज्य भी है| दोनों को एक दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता है|

इस प्रक्रिया में, पावन आत्मा जी आप के भीतर तरह-तरह के काम करते रहेंगे: परिष्कार करना, आप को शुद्ध करना और समझ देना, हृदय की गहराईओं में काँटों और छिपे पापों का खुलासा करना| लेकिन यदि आप अपने से न निकारें और अपने को सूली पर बलिदान न करें, तो आप साँस नहीं ले पाएँगे और यात्रा में पीछे सरक जाएँगे| अंत में, आप पूछ सकते हैं कि मेरे लिये राज्य के फाटकों में प्रवेश करने में कितिना समय लगेगा? जवाब यह है कि आप को साफ़ करने के बाद, जब येशुआ जी आप के दिल में हाथ चला सकते हैं और जांच में मालुम होता है कि आप उन के अलावा किसी और वस्तु या व्यक्ति के साथ नहीं बंधे हैं, तो आप अंदर हैं|

पहले परम ईश्वर के राज्य को ढूँढ़ो, और उन की भलाई भी; और ये सारी चीज़ें तुम को दी जाएँगी| सो करो और पूरी दावत मिल जाएगी!

आज्ञापालन की बुलाहट #421

PO Box 299 Kokomo, IN 46903 USA   www.schultze.org

         

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